पोएटटेस ऑफ़ द फोल 

क्या जान पाएं हैं आप-
इन अखबारों और टीवी के इंकलाब से?
क्या पूछ पाये हैं वो सवाल जो 
सबकी आँखों मैं हैं खड़े हुए?

क्या मान पाये हैं आप अपनी दुनिया के बारें मैं 
इसमें क्या नया और पुराना नज़र आया आपको?
क्या खुलापन और क्या बेजुबानी का आलम पाया 
क्या आपने इसको है अपनाया?

क्या समझ लिया और क्या मानसिकता से हो गए?
क्या मरम्मत की आपने अपने डर की?
रात को जब ओद्के कम्बल सोये होंगे-
तब क्या कोई लोग रोये होंगे???

क्या उस जालिम का चेहरा आपसे मिलता था?
क्या मालूमात अपने जजबात से किया रहेगा 
क्या कोई सुबह कॉफ़ी की चुस्की के साथ फिर से जिया रहेगा?

इन दिनों बस आग लगी हुई है -
फिलहाल 
सिर्फ आग लगी हुई है 


हर दिल शायद कहता है 
रोने दो जो रोता है 
सोने दो जो सोता है 
कह दो जो भी कहता है 
करने दो जो करता है 
कीमती है यह सब 

सोच बदलने के काम आएगी 
एक पहेल शायद आज हो जाएगी !

~
लक्ष्मी अजय 

Comments

Unknown said…

'while the crickets call
a plentitude of sepia stories
and the calm vigil of the moth~'
love it.. brings back childhood memories of watching dusk befall on the terrace :)
ruchi m.

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